29 Sept 2012

तस्वीर क़ैद करने के लिए ,
एक चेहरे की ज़रुरत है ...
चेहरा पहचान जाए जो तस्वीर ,
बस फिर कहाँ परे, उसकी कोई फितरत है ...

27 Aug 2012


यह तेरी ही है परछाई ,
तुझमें एक अलग पहचान है बनाई ...
है एक नन्ही-सी परी ,
तेरे आँगन में जिसने यूं मुस्कान भरी ...

11 Aug 2012

बस कुछ पाने की चाहत में  ,
मैं  बेलगाम ही कुछ थम कर , 
कुछ ठहर कर , बढ़ रहा हूँ   ...
आरज़ू  भी है , कुछ हसरत भी है ...
लगे मुझे अभी कुछ और जीने की ज़रुरत भी ...

बहुत दूर जाने की सोची है  ,
पर राह भटक गया हूँ ,
मिलते नहीं किसी भी मोड़ पर मंज़र ,
जिनका पलपल कर रहा मैं इंतज़ार यूं ...

26 Jun 2012

कि अब तो ख्वाहिशें भी ,
पड़ गयी धुंधली ,
वाकिफ़ नहीं तमन्नाएं मेरी ,
मेरी ही हसरतों से ,
कि नावाकिफ़ हुई मेरी ही आशाएं ,
मेरी चाहतों से |
मानो रंजिशें हुईं , क़दमों को मेरी आहटों से ...

10 May 2012

कब मिलेगी इन सुर्ख पत्तों को ,
शाखों से , झड़ने की वजह ...
कब मिलेगा इन उड़ते पंछियों से ,
उन्मुक्त आसमान में , उड़ने का सबब ...
कब मिलेगी अल्फाजों से , 
एक शिद्दत भरी दास्ताँ ... 
कब होगी महकमों को ,
खुल कर, सांस लेने की तलब ...
कब खुलेंगी बाहें ज़िन्दगी की ,
अपने आघोष में समाने के लिए ...
कब होगा हर कतरा लहू का ,
लिखने को मोहताज ...
कब होगा शिकस्त का ,
पर्दा फाश ...
इसी कश-म-कश में रेंगती हुयी , 
मेरी सोच की रफ़्तार ...
है कहने को रफ़्तार ,
पर है मद्दह्म बहुत ... 
बन बैठा हूँ जैसे ,
एक जीता-जागता बुत ...

13 Apr 2012

ना कोई मुक़ाम रहा पाने को ,
ना कोई मंज़िल दिख रही है ...
बस आफ़ताब की तमन्ना लिए बढ़ रहे हैं ,
कि व्यर्थ ही यह कोशिश लग रही है  ...
फिर भी कोशिशों के पुलिंदे बाँध रहे हैं , 
के कुछ तो आस अब भी बाक़ी है 
 
बवंडरों और तूफानों से तो गुज़र चुके हम ,
ना कोई उनसे अब डर है ना ही उनकी फ़िक्र ,
वो तो बस आपस कि आपस में ही तक़रार है ,
जिन मुसीबतों का हम कर रहे ज़िक्र  ...

25 Feb 2012

है तेरी पहुँच मुझसे ऊंची, तो क्या ,
है झुकना तुझे भी , है झुकना मुझे भी ...
है रफ़्तार तेरी मुझसे ज़्यादा , तो क्या ...
 है थमना तुझे भी , है थमना मुझे भी ...

है अलग पहचान तेरी मुझसे अलग , तो क्या ,
है उम्मीद तुझमें भी , है उम्मीद मुझमें भी ...
है मुस्कान तेरी मुझसे भी बड़ी , तो क्या ,
है लगता खुश तू भी , हूँ खुश मैं भी ... 
क्यूँ आज मायूस है चाँद भी ,
कहाँ उसकी हुई मुस्कान ग़ुम है ...
कि आज जो हुई जो तेरी आँखें नम ,
क्यूँ आज है तू गुमसुम ...

न ही रखी किसी से रंजिश ,
न किसी से कोई तेरा बैर ...
हो जाएँ नाराज़ जो कुछ लम्हें ,
न समझना इन्हें ग़ैर ...

15 Jan 2012

अब भी नहीं बदली यह मुस्कान ,
बदल गए बस कुछ मंज़र ...
किस्मत की लकीरों से बने सुर्ख निशाँ ,
अब भी खिंचते हैं , टिकते नहीं जो पल भर ...

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