11 Feb 2010

अमन की आशा

एक ही है पहनावा, एक ही है जुबां,
दोनों तरफ के हुए, एक समान कुर्बान ,
फिर किस बात का तुझे हो अहम् ,
किस बात का मुझे हो गुमान

इंसान है, इंसान से न बैर रख,
उठ चला जो आज, अमन का पैगम्बर,
लिए अमन की आशा, तू भी एक पहल कर,
फलक की ओर अपने कदम बढ़ाकर ।

न ही है अपनी ये दो बीघा ज़मीन,
न हुआ तेरा वो आसमान
एक ही था जब अपना ये गुलिस्तान,
क्यूँ हुए हम यूँ दो जहां

अब भी वक़्त जो हमें थाम ले,
चल मिलकर तय कर लें यह राह,
जाने कब दौर ऐसा फिर आएगा,
कि पूरी हो अपनी यह चाह ...

Followers

Blog Archive