1 Aug 2022

क्यों मिटने लगे हैं,
लकीरों के निशान...
क्यों सरहदों की,
बदलने लगी है पहचान...
क्यों बोलने लगे हैं,
वो लम्हें, कभी थे जो बेज़ुबान...
फर्क पड़ता नहीं क्यों,
ना होती दिखे कोई मुश्किल आसान...

Followers

Blog Archive