16 Oct 2010

न कोई ठिकाना मिल रहा ,
न ही मंजिल से हो रहे वाकिफ ,
बस चले जा रहे हैं ,
जहां जिस डगर से हो रहा तारुफ़ ...

15 Oct 2010




है कोई उम्मीद अगर बाकी ,
तो उस उम्मीद पे जी ले ,
वरना कुछ ऐसा कर
के तू अपनी हर जीत में जी ले


ख़ामोश हो जाएँ ,
उठती हुई निगाहें ,
जब ज़िन्दगी खोल दे ,
तेरे लिए अपनी बाहें ...


13 Oct 2010

ग़र ज़मीर कहे तेरा तुझसे ,
तू ग़मों से नाता जोड़ ले ...
मत ठिठक कर बैठ ,
तू यूं गुमसुम होकर ,
कुछ आहें भर ,
बस ख़ुशी के समीप रहकर ,
फिर ख़ुशी भी ,
तेरी तन्हाइयों में सिमट जायेगी ,
बदती हुई तेरी ग़मों से दूरियों के दरमयां ,
एक ख़ुशी की लहर दौड़ जायेगी ...

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