19 May 2014

यूँ तो मुस्कुराने की वजह ढूंढते हैं लोग ,
हम तो बेवजह ही मुस्कुरा लेते हैं  …
मिले जो कुछ पयाम राहों के ,
बिना मंज़िल के ही जी लेते हैं  ...
समझदारी औरों की नहीं ,
अपनी समझ में ढूंढते हैं  …
आधी-अधूरी सी समझ से ,
हर वक़्त जूझते हैं  …
 
अब तो रंगों के मिज़ाज भी बदल गए ,
पुरानी हुई दास्ताँ जो कल थी सुनाई  … 
पलों की गिरह में आज को बांधे हुए  ,
ख़ाँ -म-खाँ ही कुछ खोए  हुए लम्हों को तस्सव्वुर छुए  …

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