1 Aug 2014

तेरे बेशक़ीमती अल्फ़ाज़ों को , हुनर की नहीं ,
अब तलाश है पहचान की …
उभरते हुए लव्ज़ों की न कर फ़िक्र ,
यह आवाज़ है परस्तिश-ए-एहसान की …


28 Jul 2014

गुज़रते हुए छिन्न-भिन्न लम्हों को ,
बीती हुई यादों की कब थी परवाह ....
बिखरे हुए मोतियों को जो मिल जाए ,
माला में पिरो जाने की वजह  …
जी ले ज़रा इत्मीनान से ,
कि सांसें तेरी, अभी बाकी हैं  …
इक अरमान रह गया जो दिल में ,
कि बदलने की चाह, अभी बाकी है  …
कश-म-कश जो बढ़ती जाए ज़िंदगी की ,
न होने दे ख़्वाबों को ज़ार-ज़ार  …
कि हौंसलों को रख बुलंद ,
बख़्शेगी हर तालीम , बरक़त बेशुमार  …



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