14 Feb 2011

सिमटे हैं कुछ रिश्ते लकीरों में ,

और कुछ सिमटे तकदीरों में ,

बांटे हों कुछ अरमान जैसे अमीरों ने ,

समेटे जिनमें से कुछ , फुर्सत में, फ़क़ीरों ने ...

ऐसा लगा, ज़र्रा-ज़र्रा काँप उठा ,

तेरी इस ख़ामोशी से ,

उभर आता है जैसे लहू ,

किसी की सरफरोशी से ...

कुदरत की फितरत से परे ,
न कोई जीया है , न जीएगा ,
बस उसी की रहमत से ,
तेरी तकदीर का फलसफा बना है, और बनेगा ...

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