क्यूँ आज मायूस है चाँद भी ,
कहाँ उसकी हुई मुस्कान ग़ुम है ...
कि आज जो हुई जो तेरी आँखें नम ,
क्यूँ आज है तू गुमसुम ...
न ही रखी किसी से रंजिश ,
न किसी से कोई तेरा बैर ...
हो जाएँ नाराज़ जो कुछ लम्हें ,
न समझना इन्हें ग़ैर ...
कहाँ उसकी हुई मुस्कान ग़ुम है ...
कि आज जो हुई जो तेरी आँखें नम ,
क्यूँ आज है तू गुमसुम ...
न ही रखी किसी से रंजिश ,
न किसी से कोई तेरा बैर ...
हो जाएँ नाराज़ जो कुछ लम्हें ,
न समझना इन्हें ग़ैर ...
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