1 Aug 2022

क्यों मिटने लगे हैं,
लकीरों के निशान...
क्यों सरहदों की,
बदलने लगी है पहचान...
क्यों बोलने लगे हैं,
वो लम्हें, कभी थे जो बेज़ुबान...
फर्क पड़ता नहीं क्यों,
ना होती दिखे कोई मुश्किल आसान...

9 Mar 2020

जब खुद पर हो यकीन,
तो लगता है ज़िंदा हूं मैं...
किस्मत जब लगाए बैठी हो आस,
तो लगता है ज़िंदा हूं मैं...
आवाम की जब पुकार बन सकूं,
तो लगता है ज़िंदा हूं मैं...
मौक़ा मिले जब हंसने का बेवजह,
तो लगता है ज़िंदा हूं...
खाख़ में मिल जाने का सबब ना मिले,
तो लगता है ज़िंदा हूं मैं...
आराम फरमा रहे लोगों से अलग महसूस होता जब,
तो लगता है ज़िंदा हूं मैं...

16 Sept 2019

क़लाम बदलने का सबब तो मिल जाएगा ,
कलम को बदलने का कहाँ से हुनर पाएंगे  ...
जो इसका भी हो जाए हमें इल्म  ,
तो क्या कोई तुर्रम खां न बन जाएंगे  ...

कहने वालों ने बताया है, कि कुछ कमज़ोर हो गए हो,
ये तो वक़्त की आदत है, अच्छा जिसे लगता है बदलना  ... 
अब थोड़ा सा हम जो गए बदल ,
तो भला इसमें वक़्त का क्या क़सूर  ... 

उन यादों की क्या तस्वीर बनाएं ,
जिन्हें कभी जिया ही नहीं ...
उम्मीद है अपनी बेहतरीन यादों के ज़रिये ,
फिर मिलेंगे हम जल्द ही कहीं ...
है अल्फाजों में तेरे वह सच्चाई, 
जिस एहसास से सिर्फ तू ही मुखातिब...
और कोई क्या बता पाएगा,
जो बाप बेटे के इस अनमोल रिश्ते के दरमयां हुआ मुनासिब...

17 Sept 2016

जज़्बातों को मत कर अनदेखा ,
उनमें ही तेरे हर सवाल का जवाब मिलेगा  ....
वो जूनून अब भी तेरे ज़हन में ज़िंदा है ,
खुद में झाँक कर देख, तेरे करीब तुझे तेरा ख्वाब मिलेगा  ...
जीने का जुनून जब ज़हन में फितूर बन कर ज़िंदा हो,
तो हर सबब जीने का एक क़ायदा है,
फिक्र तो बस इस ख्याल को तवज्जो देती,
कि बेमुर्रवत जीना ही क्यों नहीं लम्हा-दर-लम्हा गंवारा है.....

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