तेरे बेशक़ीमती अल्फ़ाज़ों को , हुनर की नहीं ,
अब तलाश है पहचान की …
उभरते हुए लव्ज़ों की न कर फ़िक्र ,
यह आवाज़ है परस्तिश-ए-एहसान की …
अब तलाश है पहचान की …
उभरते हुए लव्ज़ों की न कर फ़िक्र ,
यह आवाज़ है परस्तिश-ए-एहसान की …
Kuchh Ehsaas Hai, Kuchh Aas Hai ... Ye Shabd Kehte Wahi , Jis Soch Ka Kiya Maine Aabhaas Hai...
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