16 Sept 2019

क़लाम बदलने का सबब तो मिल जाएगा ,
कलम को बदलने का कहाँ से हुनर पाएंगे  ...
जो इसका भी हो जाए हमें इल्म  ,
तो क्या कोई तुर्रम खां न बन जाएंगे  ...

कहने वालों ने बताया है, कि कुछ कमज़ोर हो गए हो,
ये तो वक़्त की आदत है, अच्छा जिसे लगता है बदलना  ... 
अब थोड़ा सा हम जो गए बदल ,
तो भला इसमें वक़्त का क्या क़सूर  ... 

उन यादों की क्या तस्वीर बनाएं ,
जिन्हें कभी जिया ही नहीं ...
उम्मीद है अपनी बेहतरीन यादों के ज़रिये ,
फिर मिलेंगे हम जल्द ही कहीं ...
है अल्फाजों में तेरे वह सच्चाई, 
जिस एहसास से सिर्फ तू ही मुखातिब...
और कोई क्या बता पाएगा,
जो बाप बेटे के इस अनमोल रिश्ते के दरमयां हुआ मुनासिब...

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