29 Apr 2015

नूर-ए-इबादत भी फ़ीकी पढ़ जायेगी  ,
तेरी तबस्सुम-ए-झलक जब उसे मिल जाएगी  …
तू औरों के ऐतबार को जो तवज्जो दे ,
तेरी ही पहचान , तेरे  करीब, तुझे पल-पल लाएगी  …

बस खुद को तू यूं ही बनाये रखना ,
कि तेरे साथ ही तुझे दुनिया नज़र आएगी  …
फ़र्क सिर्फ इतना होगा , कि भीड़ में ,
तेरी शक़्सियत, तेरे सफ़ीनों को तुझसे मिलाएगी  …

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