कुछ शब्दों से हो जाए ,
जो बयान ये ज़िन्दगी ....
यादों को समेटने की ताक़ में ,
न गुज़रते ये लम्हे …
पैरवी तो की अल्फ़ाज़ों ने ,
न की वकालत वक़्त ने …
चले जो इन बिखरे मोतियों को ,
होकर बेपरवाह, बेवजह ही संजोने ...
जो बयान ये ज़िन्दगी ....
यादों को समेटने की ताक़ में ,
न गुज़रते ये लम्हे …
पैरवी तो की अल्फ़ाज़ों ने ,
न की वकालत वक़्त ने …
चले जो इन बिखरे मोतियों को ,
होकर बेपरवाह, बेवजह ही संजोने ...
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