31 Jan 2013

कुछ रंजिशें हुईं  क़दमों को, मेरी आहटों से ...
कुछ इस क़दर हुईं नावाक़िफ़ हसरतें , मेरी चाहतों से ...
कि मायूस हुआ मन, हुआ कुछ खफ़ा , कुछ बेदुरूस्त भी ...
कि मिला नहीं उसे,  कोई ग़म-ए-फ़ुर्सत भी ...
फिर आस लगाए बैठा, कब होगी किस्मत से दूर ये नाराज़गी ...
हो न हो, बाक़ी है तक़दीर में पाना बहुत कुछ अभी ...

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