30 Apr 2010

जब खुदा ने खुद चाहा,
तो कुछ मोती यहाँ भी बरसेंगे ...
क्यों हम ऐसे बैठे
बादलों की आहट को तरसेंगे ....

बारिश को भी ,
एक मंजिल मिल ही गयी ...
थोड़ा इंतज़ार करने की थी देर
कि अम्बर से खैरियत है पायी ...

1 comment:

Followers

Blog Archive