26 Dec 2010

जब रास्ता कहीं और न जाता हो ,
तो मंजिल भी वहीं ले जायेगी ,
बड़ते लम्हों में ,
अपनी किस्मत शायद यहीं रंग लाएगी |

9 Nov 2010

वक़्त की गिरफ्त में रहकर ,
चाहा मैंने कुछ लम्हों को थामना ,
बस थोड़ी उम्मीद ही हाथ लगी ,
फिर सोचा अब इस उम्मीद को ही है अंजाम देना ...

26 Oct 2010

है तेरी सोच की रफ़्तार अगर तेज़ ,
तो उसे मद्धम कर ले ,
दुनिया न चल पाए, जो तेरी सोच की रफ़्तार से ,
तू ही दुनिया की रफ़्तार से बढ़ ले ...

22 Oct 2010

अरे पंखो को मत कर अनदेखा ,
के पंखों की ही ,
हौंसलों को करने की बुलंद ,
एक अलग पहचान है ,
उड़ान भरते हुए ,
ग़र थम जाए कहीं तू ,
पंखों के आशियाने में ,
उड़ान भरनी आसान है
हर दौर से गुजरने की
तमन्ना लिए जो बड़ा ,
मैं तो आप ही ,
अपनी ख्वाहिश से लड़ा

16 Oct 2010

न कोई ठिकाना मिल रहा ,
न ही मंजिल से हो रहे वाकिफ ,
बस चले जा रहे हैं ,
जहां जिस डगर से हो रहा तारुफ़ ...

15 Oct 2010




है कोई उम्मीद अगर बाकी ,
तो उस उम्मीद पे जी ले ,
वरना कुछ ऐसा कर
के तू अपनी हर जीत में जी ले


ख़ामोश हो जाएँ ,
उठती हुई निगाहें ,
जब ज़िन्दगी खोल दे ,
तेरे लिए अपनी बाहें ...


13 Oct 2010

ग़र ज़मीर कहे तेरा तुझसे ,
तू ग़मों से नाता जोड़ ले ...
मत ठिठक कर बैठ ,
तू यूं गुमसुम होकर ,
कुछ आहें भर ,
बस ख़ुशी के समीप रहकर ,
फिर ख़ुशी भी ,
तेरी तन्हाइयों में सिमट जायेगी ,
बदती हुई तेरी ग़मों से दूरियों के दरमयां ,
एक ख़ुशी की लहर दौड़ जायेगी ...

7 Oct 2010

पा सके अगर तुझमें ,
तुझसे अलग , तेरी पहचान कोई
रख खैर के ,
तुझे मिली है एक शख्सियत नयी

9 Aug 2010

क्यों जन्नत-इ-जहां को ,
है जहां-इ-जहन्नुम बनाया ,
क्यों इंसान होकर भी ,
इंसान ने , इंसान में ही , है बैर पाया ...

26 Jul 2010

जीवन

जीवन काटने के लिए नहीं ,
जीवन है जीने के लिए
जीवन नहीं कुछ करने के लिए ,
पर कुछ कर दिखाने के लिए

जीवन में होती है हार और जीत ,
या तो होंगे थोड़ा-बहुत उदास ,
या गायेंगे गीत ,
यही है जीवन की रीत

होती है अगर हार ,
करेंगे फिर से प्रयास
चाहे कितनी बार करना पड़े प्रयास ,
नहीं होंगे हम हताश

यह जीवन है बड़ा अनमोल ,
इसे यूँ व्यर्थ न गवाओ
कुछ करो , लोगों , कुछ करो ,
जीवन को साकार बनाओ

19 Jul 2010

कर गुज़र वह,
जो दुनिया तुझसे न चाहे,
मंज़िल वही चुन,
जिसकी तू ही बनाए राहें

न की तूने जो खुद ,
अपनी मंजिल तय ,
तो रास्ते कहाँ से पायेगा
बस उन अनजानी और अनचाही राहों में ,
निराशा के संग ठोकरें ही खायेगा ...

8 May 2010

है पास तेरे, बहुत कुछ पाने को,
फिर भी लगता क्यूँ, तू खुश नहीं |
न रुका हुआ, है रफ़्तार तेरी,
कभी मद्धम, कभी तेज़,
फिर भी लगता क्यूँ, तू खुश नहीं ||

है काम कुछ तो करने को,
फिर भी लगता क्यूँ, तू खुश नहीं |
है पूरी हुई, तेरी कई हसरतें,
फिर भी लगता क्यूँ, तू खुश नहीं ||

है पाने चला, कोई तो मुकाम,
फिर भी लगता क्यूँ, तू खुश नहीं |
है तेरे ज़मीर के पास बहुत-कुछ बताने को,
फिर भी लगता क्यूँ, तू खुश नहीं ||

है तेरे मन में, अब भी ख्वाहिशें,
फिर भी लगता क्यूँ, तू खुश नहीं |
ख़ुशी से न दूर है तू,
फिर भी लगता क्यूँ, तू खुश नहीं ||

30 Apr 2010

जब खुदा ने खुद चाहा,
तो कुछ मोती यहाँ भी बरसेंगे ...
क्यों हम ऐसे बैठे
बादलों की आहट को तरसेंगे ....

बारिश को भी ,
एक मंजिल मिल ही गयी ...
थोड़ा इंतज़ार करने की थी देर
कि अम्बर से खैरियत है पायी ...

28 Mar 2010

ज़िन्दगी के हर दौर से,
गुजरने की ख्वाहिश रखकर
वक़्त के दायरे में रहकर,
हर लम्हा जीने की,
गुज़ारिश तो कर

ग़र ख्वाहिश बाँध ले तू ,
जन्नत पाने की ,
जन्नत ही होगी नसीब ,
एक पहल तो कर,
खुद को आज़माने की

11 Feb 2010

अमन की आशा

एक ही है पहनावा, एक ही है जुबां,
दोनों तरफ के हुए, एक समान कुर्बान ,
फिर किस बात का तुझे हो अहम् ,
किस बात का मुझे हो गुमान

इंसान है, इंसान से न बैर रख,
उठ चला जो आज, अमन का पैगम्बर,
लिए अमन की आशा, तू भी एक पहल कर,
फलक की ओर अपने कदम बढ़ाकर ।

न ही है अपनी ये दो बीघा ज़मीन,
न हुआ तेरा वो आसमान
एक ही था जब अपना ये गुलिस्तान,
क्यूँ हुए हम यूँ दो जहां

अब भी वक़्त जो हमें थाम ले,
चल मिलकर तय कर लें यह राह,
जाने कब दौर ऐसा फिर आएगा,
कि पूरी हो अपनी यह चाह ...

9 Jan 2010

बड़े- बड़े ख़्वाबों को मन में समेटे हुए,
मंज़िल की ओर चल दिए...
थोड़ा थम जाओ, थोड़ा ठहर जाओ,
अभी तो कुछ ही हैं, फासले तय किये|

कल एक नए दिन का नया सवेरा होगा
कहीं न कहीं तो अपना बसेरा होगा...
फिर रास्ता तो हम खोज ही लेंगे,
पहले कुछ ख्वाहिश तो बाँध देंगे |
वक़्त न दिया ज़िन्दगी ने,
कि कुछ थम जाऊं, ठहर जाऊं,
पाबंदियों के इन घेरों से,
कुछ तो आगे बढ़ पाऊँ ||

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