तेरे शब्दों के एहसास में ,
बाकी रह गयी गुंजाईश अब भी कहीं ...
कि हो न हो , रह गयी
हसरत कोई , हुई पूरी अब भी नहीं …
कोई नयी आरज़ू , तेरे ज़हन में ,
दे रही दस्तक , घड़ी-दो-घड़ी …
जी ले ज़रा इत्मीनान से ,
क्यूँ है इतनी जल्दी पड़ी ...
बाकी रह गयी गुंजाईश अब भी कहीं ...
कि हो न हो , रह गयी
हसरत कोई , हुई पूरी अब भी नहीं …
कोई नयी आरज़ू , तेरे ज़हन में ,
दे रही दस्तक , घड़ी-दो-घड़ी …
जी ले ज़रा इत्मीनान से ,
क्यूँ है इतनी जल्दी पड़ी ...
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