8 May 2010

है पास तेरे, बहुत कुछ पाने को,
फिर भी लगता क्यूँ, तू खुश नहीं |
न रुका हुआ, है रफ़्तार तेरी,
कभी मद्धम, कभी तेज़,
फिर भी लगता क्यूँ, तू खुश नहीं ||

है काम कुछ तो करने को,
फिर भी लगता क्यूँ, तू खुश नहीं |
है पूरी हुई, तेरी कई हसरतें,
फिर भी लगता क्यूँ, तू खुश नहीं ||

है पाने चला, कोई तो मुकाम,
फिर भी लगता क्यूँ, तू खुश नहीं |
है तेरे ज़मीर के पास बहुत-कुछ बताने को,
फिर भी लगता क्यूँ, तू खुश नहीं ||

है तेरे मन में, अब भी ख्वाहिशें,
फिर भी लगता क्यूँ, तू खुश नहीं |
ख़ुशी से न दूर है तू,
फिर भी लगता क्यूँ, तू खुश नहीं ||

2 comments:

  1. Brother you deserve the biggest round of Applause - Send all your writings to Prasoon Joshi's organization, I am sure they would acknowledge it - God Bless

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  2. I agree with Rajat...
    Good one!!!

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