11 Oct 2009

बुलंदी
किन गलियारों से गुज़रता है ,
जिन पर तेरा निशां नहीं पड़ता
बस आफ़ताब की तमन्ना लिए ,
तू यूं ही है खाख ढूंढता


आगे बढ़, उठ चल ,
तेरे लिए पथ और भी हैं
ख़्वाबों को मत बाँध ज़ंजीरों में ,
फासले अभी तय करने और भी हैं

कर लिया जो सफर शुरू ,
तो मुश्किलों का सामना कर
बस यूं ही बड़ा कदम ,
ना मुड़ पीछे मगर

ख़त्म न होगा रास्ता ,
मंज़िल पायेगा न जब तक तू
वक्त न ठहरेगा किसी के लिए ,
कब होगा तू इससे रूबरू


जीत पाने का जज़्बा रख ,
कौन रोक सकेगा तुझे तब
हैं अगर इरादे बुलंद ,
इससे अच्छी होगी शुरुआत कब ...

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